आज का युग
सृष्टि पहले भी थी
सृष्टि आज भी है।
कैसे बदला यह युग,
देखकर अचंभित रह जाती हूं।
इंसान इंसान को पहचानते नहीं,
बदल रहा है यह आज का युग।
सृष्टि पहले भी थी
सृष्टि आज भी है।
प्रेम सद्भावना की गूंज थी,
थाली एक थी खाने वाले अनेक थे।
एक दूसरे की फिक्र थी ,
आज अपने भी बेगाने हैं।
सृष्टि पहले भी थी
सृष्टि आज भी है।
आज इंसानों की जगह मोबाइल ले लिया,
रिश्ते-नाते मानवता गायब है।
लोग एक दूसरे को पहचानते नहीं
कितना बदल गया है आज का युग।
सृष्टि पहले भी थी
सृष्टि आज भी है।
विगत में इंटरनेट ना थी, क्या जिंदगी ना थी?
एक दूसरे को पहचानते थे?
आज पहचानते तो दूर,
एक दूसरे के रक्त के प्यासे हैं।
सृष्टि पहले भी थी
सृष्टि आज भी है।
जीवन की दौड़ में आगे बढ़ते,
हम भूल जाते हैं संबंधों के महत्व को,
सोशल मीडिया के जाल में उलझकर,
हम खो देते हैं सच्चे रिश्तों को।
सृष्टि पहले भी थी
सृष्टि आज भी है।
दूर हो जाते हैं यादों के संगी,
जो थे हमारे जीवन का हिस्सा,
व्यस्तताओं की जंगली दुनिया में,
भूल रहे प्यार और सम्मान का पर्चा।
सृष्टि पहले भी थी
सृष्टि आज भी है।
मन में लगे होते हैं कई सवाल,
कि क्या सचमुच बदल रहा है इंसान?
पर यह भी सत्य है कि हम खो रहे हैं,
हमारे जीवन से प्यारे रिश्ते-नाते।
सृष्टि पहले भी थी
सृष्टि आज भी है।
बिखर रहे हैं प्यार और सम्मान के धागे,
देखो, कितना बदल रहा है इंसान ।
सृष्टि भी वही ,इंसान भी वही,
सोचो, आखिर क्यों बदल रहा है इंसान?
डेजी भुवन
आरा ,बिहार
फोन न -9431670484