गुरु-डॉक्टर नरेश सिहाग एडवोकेट

गुरु गुरु पूर्णिमा का आया त्योहार, गुरुओं को बधाई, गुरुवाणी का उद्घाटन। ये दिन है सब गुरुओं को समर्पित, जब हम शिष्य बने होते हैं पुर्ण भाव से युक्त होते है। गुरु की अमरता निभाता हैं ये दिन, गुरु के Read More …

दिल्ली का अंबर-कार्तिक मोहन डोगरा

दिल्ली का अंबर एक कविता उस शहर के नाम जो है कई राजनेताओं का धाम आधी कविता उस शायर के लिए जो करें है बवाल सुबह शाम हर कोई बस्ता है इस शहर आते है लोग हर तरफ से दिल्ली Read More …

प्रकृति धरा का सिंगार-आशीष भारती

प्रकृति धरा का सिंगार पुष्पित पल्लवित पृष्ठभूमि है सिंगार वृक्षारोपण हमारे जीवन का आधार नदी नहरें तालाब झीलें जलकुंड पहाड़ जंगल धरा का अद्भुत संसार।। प्रकृति का अद्भुत सौन्दर्य निराला टूट रही सांसें छिन रहा मुंह से निवाला प्रकृति का Read More …

बादल आए-दिलबाग ‘अकेला’

बादल आए बादल आए , बादल आए शीतल-शीतल जल भर लाए चलो गली में झूमे मिलकर सारी गर्मी दूर भगाऐं नन्हे-नन्हे पौधे झूमे बरखा रानी मुखड़ा चूमे चली हवाएं ठण्डी-ठण्डी तप गए थे तपती लू मे देखो छोटी सी बगिया Read More …

आशा का नव संचार है ,नारी-डॉ० कामाक्षी शर्मा

आशा का नव संचार है ,नारी हंसी का जन्म तुमसे है ,नारी फिर तुम पर क्यों विपदा सारी? तुमसे हंसी का जन्म हुआ , तुमसे फैली घर रोशनी, मन के मंदिर में मूरत बन, घर संजोकर तुम बढ़ चली, प्रभु Read More …

सबसे अच्छा मानव रूप-डॉO मीनू शर्मा

सबसे अच्छा मानव रूप सबसे अच्छा मानव रूप, फिर मानव क्यों जाता भूल ? सुंदर उसको जगत मिला है, प्रकृति मां का साथ मिला है , धरती मां भी साथ खड़ी है, नैनों में उसके अश्रु झड़ी है, दृग उसके Read More …

आज मुलाकात हुई भोर से-अंकिता गुप्ता

आज मुलाकात हुई भोर से, उसकी शीतल हवाओं के सुकून से, जो दे रहीं थीं, पिता जैसा आश्वासन, आज मुलाकात हुई चिड़ियों के चहचहाट से, गगन में उड़ते उनके झुंड से, जो सिखा रहीं थीं, पिता जैसा अनुशासन, आज मुलाकात Read More …

पिता-डॉ. अंशु बत्रा

पिता पिता है आन, पिता है शान, पिता के बिना जिंदगी बेजान l पिता है जीवन का अभिमान, पिता है मेरा आत्म सम्मान, पिता से है मेरी पहचान, पिता का है, इस जीवन में अमूल्य योगदानl पिता से ही यह Read More …

मानवता -पंचमणी कुमारी 

मानवता बैठी थी मैं  बहुत देर तक, जीवन की तान सुनाने को। आँखें खुली तो पता चला, जीवन का राग विरानों से। हम सीखें मानव बनना, पर, मानवता कहीं तो खोई है। दीपक की लौ कोई  ला दो, घन अंधकार Read More …

मैं और तुम-डॉ रीता सोनी

मैं और तुम धरती से आकाश छूना चाहती हूँ, उड़कर गगन में सबसे कहना चाहती हूँ, नदी बनकर सागर में मिलना चाहती हूँ | नवीन पत्तों और पुष्पों की तरह खिलकर हंसना चाहती हूँ, चलो चलें उस पतवार से जो Read More …