कल शाम को खिड़की के पास खड़ी थी,
कि अचानक मेरी नजर।
साइकिल लेकर आ रहे,
व्यक्ति पर गिरी।
मेरी आंखों में खुशी छलक उठी,
और मेरी जुबां पर पापा निकल आया।
लेकिन जैसे ही उस व्यक्ति की,
साइकिल वहां रुकी की।
मेरी आंखों में भी,
आंसू निकल आए।
क्योंकि वह मेरे पापा नहीं थे,
कोई और था।
पढियार उषाबेन नानसिंह
पीएचडी शोधार्थी
श्री गोविंद गुरु यूनिवर्सिटी, गोधरा, गुजरात