टूटीं सब दीवारें
प्रो नंदलाल मिश्र
महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय
विश्वविद्यालय,चित्रकूट सतना म प्र
मानव से बनते मशीन अब राह रहा नहि दूजा।
जो इसमें पीछे रह जाए काम न आए पूजा।
दुनिया ग्लोबल भई जात है चहुदिश यही है गूंजा।
तुम भी जतन करो कुछ भाई वरना होगे बीजा।
कछु नही अब हाथ से बाहर फिर भी हाथ अधूरा।
अपने इतने दूर हो गए मिलते हाथ न पूरा।
लिखते थे जब चिट्ठी पाती बहती अश्रु कीधारा।
लगता जैसे गंगा निकली मिलने यमुनाधारा।
चिट्ठी पत्री की मत सोचो मोबाईल पर मस्त हुए।
एक पास बैठे हैं लेकिन समय नहीं सब व्यस्त हुए।
कितने गिर गए लोग जहां में प्रेम नही सब पस्त हुए।
सम्हलो रुको सोच रै मानव गर बढ़ गए तो नष्ट हुए।
बदल गया फैशन घर घर का बदले सभी तरीके।
पूजा पाठ दिखावा बन गए लगते यहां पे मेले।
मन में स्वार्थ गठरिया बांधे हरि कीर्तन के टेरे।
दिन भर ठगी करन में बीतत और लगावें फेरे।
फास्ट फूड का फैशन चल गए किचन पड़े अधूरे।
होटल का खाना खा खाकर लगते अभी से बूढ़े।
कौन बनावे खाना घर में होते बहुत झमेले।
नारी शक्ति जाग गई है मत तूं इतना खेले।
खतम हुए परिवार देश से टूटे ताने बाने।
तकनीकी बढ़ गई समय का अब क्या रोना रोने।
प्रतियोगी बढ़ गए जहां में तालमेल के टोने।
कर विश्वास बाजू पर अपने नही गवांए सोने।
मन में असंतोष की गठरी बढ़ती धीरे धीरे।
ईर्ष्या द्वेष सुलगते हर क्षण क्षीण प्रेम के डोरे।
राह हुई अब कठिन ओ इंसा रात हुई है घनेरे।
कैसे पार करे भवसागर नही संग कोई तेरे।
यदि सोचे देखा जायेगा भूल पड़ेगी भारी।
अपने तेरे काम न आवैं है करतूत तुम्हारी।
तुमको माया समझ न आवे ऐसी करनी तेरी।
सुधर सके तो सुधर ए इंसा मत कर इसमें देरी।
एक तरफ ग्लोबल है न्यारा दूजे पूर्वाग्रह ने मारा।
जाति की अब बिसात बिछी है धर्म लगाए नारा।
हर घर में अब द्वंद्व छिड़ा है किससे कौन है हारा।
मानव मानव को लूट रहा मानव मानव से हारा।
। ॐ।
मोबाइल:9584542852
ई मेल nandlalmishra11@gmail.com
दिनांक 20 जून 2023
स्थान। चित्रकूट