मैं और तुम
धरती से आकाश छूना चाहती हूँ,
उड़कर गगन में सबसे कहना चाहती हूँ,
नदी बनकर सागर में मिलना चाहती हूँ |
नवीन पत्तों और पुष्पों की तरह खिलकर हंसना चाहती हूँ,
चलो चलें उस पतवार से जो मिल जाये मंझधार से,
हर दिन कविताओं में खोकर अपने भाव पिरोना चाहती हूँ |
मैं और तुम मिले अजनबी की तरह,
पर अब तुम्हारी शुक्रगुज़ार होना चाहती हूँ,
लो मिल गया आकाश तुम्हारा संग और साथ,
सब कुछ पाकर गुलज़ार होना चाहती हूँ |
डॉ रीता सोनी
सहायक व्याख्याता
रेनेसां वाणिज्य एवं प्रबंधन महाविद्यालय, इन्दौर
त्रुटि हो तो कृपया मार्गदर्शन करें