स्वप्न
डॉ ललित चन्द्र जोशी ‘योगी’
स्वप्न हैं ये!
परसों मेरी दहलीज के भीतर
बरछे और भाले लेकर आदिमानव आ रहे थे
और आज मैं विद्यार्थियों को कक्षा में,
जर्नलिज्म के एथिक्स समझा रहा था।
इसी तरह एक दिन-
किसी भीषण जंगल में
चट्टान के ऊपर चढ़कर मोगली सा,
जंगल गीत गा रहा था।
मैं हर दिन देखता हूं
एक नया सपना।
मुझे अब सपनों में ही दिखने लगी है
अजब-गजब की दुनिया
स्वप्न ही तो हैं!
जो हमें नई दुनिया दिखा रहे हैं…..
पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग, सोबन सिंह जीना परिसर,अल्मोड़ा (उत्तराखंड)-263601