ग़ज़ल-डॉ. ज़ियाउर रहमान जाफ़री

ग़ज़ल
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-डॉ. ज़ियाउर रहमान जाफ़री

वो अपने घर की भलाई को देख लेते हैं
ग़लत -सही में भी भाई को देख लेते हैं

वो लोग मेरी तरह ज़हर पी नहीं सकते
पढ़े- लिखे हैं दवाई को देख लेते हैं

तुम उसके पास जुबां खोलना तरीके से
ये जानकर भी बड़ाई को देख लेते हैं

बड़े गुरुर में रखा है तुमको शोहरत ने
चलो तुम्हारी खुदाई को देख लेते हैं

था उनका काम तो बारूद वो बिछा आये
अब हम जला के सलाई को देख लेते हैं

हमें जो फैसले करने हैं तय है पहले से
मगर रविश है सफाई को देख लेते हैं

मेरी नजर में कहां बा -लिबास हो तुम भी
छुपा लो जितनी बुराई को देख लेते हैं
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स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग
मिर्ज़ा ग़ालिब कॉलेज गया, बिहार

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