चलो आज तुझें में ग़ज़ल लिखता हूँ, हिचकियों में डूबा मेरा वो दिल लिखती हूं।
में तो हूं एक सारन आवारा सा तुझें बरसता हुआ बादल लिखता हूँ
महका हुआ है पूरा सरोवर जिससे तुझें झूमता हुआ वो कमल लिखता हूँ
और बिताएं थे जो लम्हे तेरी बाँहो में आज उन यादों को आंखें सजल लिखता हूँ
जिसमें समा गए हो तुम शब्दों की तरह चलो आज तुम्हे वो ग़ज़ल लिखता हूँ
रघुवीर दान चारण
मिजोरम विश्वविद्यालय