दया-रजत त्यागी

दया
इंसान को इंसान बनाती
है दया |
इंसान के भाव को व्यक्त
करती है दया |
दया ना हो इंसान में |
तो इंसान का फायदा क्या |
हाड़ मास के बने शरीर का |
दौलत से ढके इस शरीर का |
अहंकारव,घृणा ,लोभ से
ग्रसित इस शरीर का |
मैं मैं करती इस जुबान
का फायदा क्या |
जो संपन्न होते हुये भी |
इंसान के दर्द पर मरहम
ना लगा सके |
जो इंसान होते हुये भी
इंसान की मदद ना कर
सके |
वो जीते हुये भी है मृत
के समान |
जिसने दया को है अपना
पहला लक्ष्य माना |
उसी ने ही है इस धरती पर
है अपना सफल किरदार
है निभाया |
नाम – रजत त्यागी
छात्र – बी0ऐ0 तृतीय वर्ष सनातन धर्म
महाविद्यालय मुजफ्फरनगर उत्तरप्रदेश

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