बादल आए
बादल आए , बादल आए
शीतल-शीतल जल भर लाए
चलो गली में झूमे मिलकर
सारी गर्मी दूर भगाऐं
नन्हे-नन्हे पौधे झूमे
बरखा रानी मुखड़ा चूमे
चली हवाएं ठण्डी-ठण्डी
तप गए थे तपती लू मे
देखो छोटी सी बगिया मे
कोयल और पपीहा गाएं
खूब चले कागज़ की कश्ती
गलियों मे छाई है मस्ती
बस्ती में ही सैर-सपाटा
पिकनिक हो गई कितनी सस्ती
देखो चलकर पर्वतों से
बादल कितने झरने लाऐ
स्वरचित
दिलबाग ‘अकेला’
कैथल (हरियाणा)
सदस्य
साहित्य सभा कैथल