प्रकृति धरा का सिंगार-आशीष भारती

प्रकृति धरा का सिंगार

पुष्पित पल्लवित पृष्ठभूमि है सिंगार
वृक्षारोपण हमारे जीवन का आधार
नदी नहरें तालाब झीलें जलकुंड
पहाड़ जंगल धरा का अद्भुत संसार।।

प्रकृति का अद्भुत सौन्दर्य निराला
टूट रही सांसें छिन रहा मुंह से निवाला
प्रकृति का सुकुमार कवि सुमित्रानंदन
ताउम्र रहा उनकी कलम में प्रकृति प्यार।।

आज धरा का आंचल हो रहा उजाड़
पहाड़ जंगल काट कर मकान बने हजार
प्राणी के प्राण बचाने को करें पौधे रोपण
पशु पक्षी को भी चाहिए प्रकृति का प्यार।।

आओ मिलकर धरती को स्वर्ग बनाएं
पौधे सिंचित कर हरा-भरा सजाएं
निराले मौसम में निराली छटाएं हजार
प्रकृति का भरपूर सौन्दर्य करता चमत्कार।।

आओं आज हम मिलकर शपथ लें
पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लें
जन्मदिवस, विवाह वर्षगांठ, पुण्यतिथि
पौधे रोपे बने प्रकृति का वो आधार।।
स्वरचित एवं अप्रकाशित रचना

आशीष भारती
लेखक/ कवि/ समीक्षक
सहारनपुर (उत्तर प्रदेश)

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