रिश्ते कंगाल हो रहे है।
स्वार्थपरता की अंधता में,
इंसान इंसानियत से अंजान हो रहे हैं,
उनके अहंकार बेमिसाल हो रहे हैं,
दरअसल रिश्ते कंगाल हो रहे हैं।
बहन भाइयों में नहीं रहा है वो प्यार,
ना ही बड़ों की मिलती है वो फटकार,
एक ही परिवार में सब अनजान हो रहे हैं,
दरअसल रिश्ते कंगाल हो रहे है।
परिवार में बुजुर्ग हो रहे हैं मौन,
नई पीढ़ी उनसे पूछ रही है आप हैं कौन,
रिश्ते निभाना तो जैसे उनके लिए जंजाल हो रहे हैं,
दरअसल रिश्ते कंगाल हो रहे हैं।
प्यार मोहब्बत सिर्फ शब्दों में रह गया है,
लाजोशर्म आधुनिकता में ढह गया है,
प्यार के नाम पर सब धोखा दे रहे हैं,
दरअसल रिश्ते कंगाल हो रहे हैं।
सच्चाई को सरेआम झूठलाया जा रहा है,
भ्रष्ट आचरण को दिनोंदिन अपनाया जा रहा है,
लोभ लालच में सब ईमान बह रहे हैं,
दरअसल रिश्ते कंगाल हो रहे हैं।
दिलों में पहले नहीं थी जो कड़वाहटे,
उसी ने कलयुग में इंसानों की छीन ली है मुस्कुराहटें,
जिसे देखें वही नफरतों को ढो रहे हैं,
दरअसल रिश्ते कंगाल हो रहे हैं।
कठपुतली सी हो गई है इंसान की जिंदगी,
जिसे पैसे की भाषा है उंगलियों पर नचाती,
मन बेईमान हो रहे हैं इंसान बेजान हो रहे हैं,
दरअसल रिश्ते कंगाल हो रहे हैं।
दरअसल रिश्ते कंगाल हो रहे हैं,
अहंकार बेमिसाल हो रहे हैं।
पिंकी
नेट हिंदी साहित्य
छात्रा, बीएड ( टीकाराम कॉलेज ऑफ एजुकेशन, सोनीपत, हरियाणा)