दिल्ली का अंबर-कार्तिक मोहन डोगरा

दिल्ली का अंबर

एक कविता उस शहर के नाम
जो है कई राजनेताओं का धाम
आधी कविता उस शायर के लिए
जो करें है बवाल सुबह शाम
हर कोई बस्ता है इस शहर
आते है लोग हर तरफ से दिल्ली

कहा है ‘हनोज दूर अस्त दिल्ली’
धमकाया सत्ता को, औलिया था नाम
इस तरह ही होती है राजनीति इस शहर
साहित्य सत्ता के युद्ध का है यें धाम
दिनकर सुनाए कई नज्में उस शाम
साहित्य चिंगारी ,फरमान–ए–बगावत लिए

नौकरी खोजने आते है लोग उम्मीद लिए
जर जमीन छोड़ आना पड़ा लाहौर से दिल्ली
दर दर भटके भूखे प्यासे सुबह से शाम
वो दरवाजा खोज रहे,जिसपे लिखा हो नाम
बेघर , रंक हो या राजा ,सबका एक धाम
ऐसा दूर से चमकता दिख रहा उजड़ा शहर

जामा की सीढ़ियों से रेखता कहता शहर
ज़ौक का तेवर ,गालिब का दर्शन लिए
रहीम ,जो रखें सत्ता साहित्य का एक धाम
दाग़ की प्रेम कहानियों की गवाह , दिल्ली
ना जाने यन्हा से जुड़े , कितने शायरो के नाम
खुसरो , यहीं बसे जिनके गीत में रहते थे श्याम

मेरठ से पहुंचे वर्दी में किसान उस शाम
आग की तरह दहक रहा था यह शहर
हर जुबान पे था ,जफर –जफर एक ही नाम
हाथों में बंदूक ,गोला और बारूद लिए
जाने कितनी बार देखा?, यह मंजर बता दिल्ली
बस बनी रही उजड़ा दयार , दंडधर का हो धाम

दिल लिए नाम में यह शहर, बना प्रेम का धाम
मैं दिल हार गया राजीव चौक पर एक शाम
अंबर की बहुरंगी प्रेम कथा का स्थान है दिल्ली
ना जाने इस इश्क में कहाँ –कहाँ बसा है शहर
मैं फिरता दर दर ख्वाइंश इश्क की लिए
यूं मिला ,राजीव चौक पर, तूने लिया मेरा नाम

यह कहानी दिल्ली कि,सात बार बसा शहर
मेरी नज़्म उस शाम मिली, उसको भीतर लिए
इश्क बगावत का धाम जैसे दिल्ली अंबर एक नाम

कार्तिक मोहन डोगरा
164, सेक्टर 20,पॉकेट 14,रोहिणी दिल्ली 110086
8920458350

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